राफेल सौदे की फ्रांस में जांच शुरू मुझे तो लगता है कि भारत में इस मामले में जांच शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं–यॉन फिलिपीन
इस सौदे में कई हैरान करने वाले तथ्य हैं-यॉन फिलिपीन
राफेल जेट फाइटर प्लेन की कथित डील अब एक बार फिर सुर्ख़ियों में है.सबसे बड़ी बात ये है की अब इसमें जांच शुरू हो चुकी है !इस कथित सौदे में अनेकों ऐसे सवाल है जिनके जवाब आज तक किसी ने नहीं दिए इन कथित सौदे में बेहत हैरतअंगेज़ बाते सामने आयी लेकिन किसी का भी जवाब नहीं दिया गया !
देश के बेहद प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक भास्कर ने मीडियापार के लिए राफेल डील पर 6 रिपोर्ट्स करने वाले खोजी पत्रकार यॉन फिलिपीन और NGO ‘शेरपा’ की लिटिगेशन ऑफिसर शॉनेज मंसूस से बात की बातचीत के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है !
सवाल: दसॉ ने करीब 70 कंपनियों के साथ समझौते किए हैं। आपको सिर्फ अनिल अंबानी की कंपनी के साथ किए गए समझौते पर ही शक क्यों हो रहा है?
जवाब: हमने अपनी जांच के दौरान इसके कारणों का खुलासा किया है। भारत में तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अंबानी की नजदीकी पर ही चर्चा हो रही थी।
भारत और फ्रांस के बीच जो 126 विमानों की खरीद का मूल समझौता हुआ, इसके टेंडर में लिखा था कि दसॉ का भारत में मुख्य पार्टनर HAL होगी। ये भारत की सरकारी एयरोस्पेस कंपनी है। फिर अचानक प्रधानमंत्री मोदी ने ये घोषणा की कि भारत सिर्फ 36 विमान खरीदेगा और ये सभी फ्रांस में ही बनेंगे। जबकि पिछले समझौते के तहत अधिकतर विमानों को HAL को भारत में ही असेंबल करना था।
अचानक प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया कि टेंडर समाप्त कर दिया गया है। टेंडर का खत्म हो जाना बेहद महत्वपूर्ण तथ्य है। क्योंकि इससे दसॉ की HAL के साथ पार्टनर बने रहने की बाध्यता भी खत्म हो गई। HAL समझौते से बाहर हो गई और उसकी जगह अनिल अंबानी के रिलायंस समूह ने ले ली।हमारे पास दसॉ और रिलायंस के बीच हुए गुप्त समझौते की कॉपी है। दस्तावेज के मुताबिक भारत में जो 16.9 करोड़ यूरो निवेश होने थे, उनमें से रिलायंस को सिर्फ 4% इन्वेस्टमेंट करना था। सिर्फ इतना निवेश करके ही रिलायंस 50% की हिस्सेदार बन गई।
समझौते में लिखा है कि ज्वाइंट वेंचर में रिलायंस का प्रमुख काम प्रोजेक्ट और सर्विसेज की भारत सरकार के सामने मार्केटिंग करना होगा। इससे साफ होता है कि इसका मकसद रिलायंस के प्रभाव का इस्तेमाल कर नया प्रोजेक्ट लेना था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने टेंडर को रद्द करने की घोषणा से सिर्फ दो हफ्ते पहले रिलायंस और दसॉ के बीच समझौता हुआ। नए नियमों के तहत दासौ ने HAL को समझौते से बाहर किया और रिलायंस को ऑफशोर पार्टनर बना लिया। ये बेहद हैरान करने वाला तथ्य था और इसे छुपाया गया।
सवाल: आपने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रिलायंस समूह ने एक फिल्म कंपनी में भी पैसा लगाया, इस बारे में कुछ और बताएंगे क्या?
जवाब: ये जानकारी सबसे पहले भारतीय अखबारों ने ही प्रकाशित की थी। 2016 में अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर होने से कुछ दिन पहले अनिल अंबानी की रिलायंस ने 16 लाख यूरो उस फिल्म को बनाने के लिए दिए, जिसे फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की प्राइवेट पार्टनर और अभिनेत्री जूली गेये प्रोड्यूस कर रही थीं। जूली अब भी ओलांद के साथ ही हैं। बाद में रिलायंस समूह दसॉ का प्रमुख ऑफशोर पार्टनर बन गया। इससे भी संदेह पैदा होता है।
सवाल: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस सौदे में भ्रष्टाचार के पर्याप्त सबूत नहीं हैं, क्या आपको भी यही लगता है?
जवाब: नहीं, मुझे तो लगता है कि भारत में इस मामले में जांच शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। फ्रांस के सामने जो सबूत रखे गए हैं, उनके आधार पर जांच शुरू हो गई है। ये वही तथ्य हैं जिन्हें भारत में भी रखा जा सकता है। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने जब कहा था कि इस मामले में पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तब से अब तक कई नए तथ्य सामने आ चुके हैं। ‘मीडियापार’ कई नए तथ्य पब्लिश कर चुका है।
हमें लगता है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट के सामने जब सभी तथ्य रखे जाएंगे तो निर्णय अलग होगा। हैरत की बात ये है कि हमें जो दस्तावेज मिले हैं, उनमें से कई ED की केस फाइल से हैं। यानी जिन दस्तावेजों के आधार पर फ्रांस में मुकदमा शुरू हुआ है, वो भारत की जांच एजेंसियों के पास पहले से ही हैं। हमें लगता है कि भारत के प्रवर्तन निदेशालय ने इन दस्तावेजों की पूरी तरह से जांच नहीं की। इससे ऐसा लगता है कि ED की तरफ से कोर्ट में ये दस्तावेज पेश ही नहीं किए गए।
दैनिक भास्कर समाचार पत्र से हुई बातचीत के कुछ अंश