इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ कृष्णा कॉन्सियशनेस) ऐसे हुई इस्कॉन की शुरुआत ।
स्वामी प्रभुपाद दो दिन में लगातार दो हार्ट अटैक के बावजूद इस्कॉन की स्थापना की !
स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 में कोलकाता के एक हिंदू परिवार में हुआ था। जन्म भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक दिन बाद हुआ। 1896 में 31 अगस्त को जन्माष्टमी थी, 1 सितंबर को श्रील् प्रभुपाद का जन्म हुआ। उनका नाम अभय चरण डे था। प्रभुपाद की शादी 1918 में 22 साल की उम्र में राधारानी देवी से हुई। उनके तीन बच्चे वृंदावन चंद्र डे, मथुरा मोहन डे और प्रयाग राज डे हैं। उनके एक भाई और दो बहनें भी थीं।
1930 में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए। 1933 में गुरु भक्तिसिद्धांत स्वामी ने स्वामी प्रभुपाद से पश्चिमी देशों में कृष्ण भक्ति का आंदोलन खड़ा करने को कहा। कृष्ण भक्ति में घर-परिवार छोड़ चुके प्रभुपादजी को रहने के लिए वृंदावन के राधा-दामोदर मंदिर में एक कमरा मिला था। इसी में उनका दिन गुजरता था।
विदेश जाने का पहला मौका ही उन्हें 1965 में मिला। प्रभुपाद न्यूयॉर्क आ गए। यहां इस्कॉन को रजिस्टर्ड संस्था बनाया और श्रीकृष्ण का प्रचार शुरू किया। न्यूयॉर्क में 4 स्टोरफ्रंट नाम की जगह पर वे रहते थे, यहीं इस्कॉन का पहला मंदिर बना। न्यूयॉर्क में बहुत तेजी से अमेरिकी लोग उनसे जुड़े। 13 जुलाई 1966 को न्यूयॉर्क का पहला मंदिर बना।
1970-71 में स्वामी प्रभुपाद रशिया गए संन्यासी के वेश में दो शिष्यों के साथ वे मास्को एयरपोर्ट पर उतरे और वेशभूषा के कारण ही उन्हें होटल में नजरबंद कर दिया गया।
स्वामी प्रभुपाद के रहते दुनियाभर में 108 कृष्ण मंदिर बने। अपने जीवन के अंतिम 10 सालों में उन्होंने इस्कॉन को ना सिर्फ स्थापित किया, बल्कि दुनियाभर में श्रीकृष्ण भक्ति का पूरा आंदोलन खड़ा किया। 1966 में न्यूयॉर्क में पहला मंदिर और 1975 में भारत का पहला मंदिर वृंदावन में बना। 14 नवंबर 1977 में उनकी मृत्यु तक 108 मंदिर बन चुके थे। इस समय इस्कॉन के दुनियाभर में कुल 600 मंदिर और सेंटर्स हैं।