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भड़काऊ भाषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी, कहा- नफरती बयानबाजी का प्लेटफार्म बन गए हैं न्यूज चैनल

भड़काऊ भाषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी, कहा- नफरती बयानबाजी का प्लेटफार्म बन गए हैं न्यूज चैनल

देश में तेजी से बढ़ते हेट स्पीच के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टीवी चैनलों और न्यूज एंकर्स को फटकार लगाने हुए सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने टीवी को भड़काउ बयानबाज़ी का प्लेटफार्म बताते हुए सरकार को भी मूकदर्शक बने रहने पर जमकर फटकार लगाई। हेट स्पीच से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने बुधवार को यह बात कही। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि हेट स्पीच और भड़काई बयानों का मंच बन चुके टीवी का विभाजनकारी राजनीति करने वाले लोग लाभ उठा रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि यह एंकर की जिम्मेदारी है कि वह किसी को नफरत भरी भाषा बोलने से रोके। बेंच ने पूछा कि इस मामले में सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है। क्या यह एक मामूली मुद्दा है। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन TV पर अभद्र भाषा बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है। ऐसा करने वाले यूनाइटेड किंगडम के एक टीवी चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था।

हेट स्पीच के खिलाफ पिछले साल से दायर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के दौरान जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि आजकल टीवी भड़काऊ बयानबाजी का प्लेटफार्म बन गया है। एंकर की जिम्मेदारी है कि बहस में कोई भड़काऊ बयानबाजी न हो। प्रेस की आजादी अहमीयत रखती है, लेकिन बिना रेगुलेशन के टीवी चैनल हेट स्पीच का जरिया बन गए हैं। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि उन राजनेताओं ने इसका अधिक फायदा उठाया है जिन्हें ये टीवी प्लेटफॉर्म मंच देते हैं।

कोर्ट ने कहा, “मेनस्ट्रीम मीडिया या सोशल मीडिया चैनल बिना रेगुलेशन के हैं। यह देखना एंकर्स की जिम्मेदारी है कि कहीं भी हेट स्पीच न हो। प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। उन्हें अमेरिका जितनी आजादी नहीं है, लेकिन यह पता होना चाहिए कि सीमा रेखा कहां खींचनी है।”

नफरत फैलाने वाले शो दर्शकों को क्यों पसंद आते हैं, इस पर कोर्ट ने कहा कि किसी रिपोर्ट में नफरत से भरी भाषा कई लेवल पर होती है। ठीक वैसे, जैसे किसी को मारना। आप इसे कई तरह से अंजाम दे सकते हैं। चैनल हमें कुछ विश्वासों के आधार पर बांधे रखते हैं। लेकिन, सरकार को प्रतिकूल रुख नहीं अपनाना चाहिए। उसे कोर्ट की मदद करनी चाहिए। सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा- चैनल और राजनेता ऐसी हेट स्पीच से ही चलते हैं। चैनलों को पैसा मिलता है इसलिए वे दस लोगों को बहस में रखते हैं।

सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि दस लोगों को डिबेट में बुलाया जाता है, लेकिन जो वाजिब तरीके से अपनी बात रखना चाहते है, उन्हें म्यूट कर दिया जाता है। उन्हें अपनी बात रखने का मौका ही नहीं दिया जाता। उन्होंने कहा कि मुख्यधारा के मीडिया या सोशल मीडिया पर ऐसे भाषण भरे पड़े हैं। ऐसे में एंकर का ये कर्तव्य है कि किसी भी समय कोई ऐसे नफरती बयान न दे। प्रेस की स्वतंत्रता अहम है, लेकिन हमें सीमा का पता होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच मामले पर टीवी चैनलों को जमकर लताड़ने के साथ केंद्र सरकार से भी सवाल किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है? कोर्ट ने कहा कि सरकार को ऐसे मामलों पर प्रतिकूल रुख नहीं अपनाना चाहिए, बल्कि कोर्ट की सहायता करनी चाहिए। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वो स्पष्ट करे कि क्या वह अभद्र भाषा पर अंकुश लगाने के लिए विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का इरादा रखती है या नहीं।

 

टीवी चैनलों की हेट स्पीच वाली रिपोर्ट वाली याचिकाओं पर अगली सुनवाई 23 नवंबर को होगी। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह ये स्पष्ट करे कि क्या वह हेट स्पीच पर अंकुश लगाने के लिए विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का इरादा रखती है।

केंद्र सरकार ने 5 साल के लंबे परामर्श के बाद सोशल मीडिया पर नफरती कंटेंट रोकने के लिए एंटी हेटस्पीच कानून बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। हेटस्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों, अन्य देशों के कानूनों और अभिव्यक्ति की आजादी के तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कानून का ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। इसमें हेटस्पीच की परिभाषा स्पष्ट होगी, ताकि लोगों को भी यह पता रहे कि जो बात वे बोल या लिख रहे हैं, वह कानून के दायरे में आती है या नहीं।

 

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