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दिल्ली की अदालत ने आतंकवादी गतिविधियों की साजिश रचने के आरोपी कश्मीर के 25 वर्षीय फोटो पत्रकार मनन डार को जमानत देते हुए कहा NIA द्वारा लगाए गए आरोप सच नहीं लगते !

दिल्ली की अदालत ने आतंकवादी गतिविधियों की साजिश रचने के आरोपी कश्मीर के 25 वर्षीय फोटो पत्रकार मनन डार को जमानत देते हुए कहा NIA द्वारा लगाए गए आरोप सच नहीं लगते !

दिल्ली की एक अदालत ने कश्मीर के 25 वर्षीय फोटो जर्नलिस्ट मोहम्म मनन डार दको यूएपीए मामले में जमानत दे दी है। कोर्ट ने फैसले में कहा उसके खिलाफ एनआईए द्वारा लगाए गए आरोप ठोस और सत्य प्रतीत नहीं होते। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शैलेंद्र मलिक ने कहा कि “प्रतिबंधित आतंकी संगठन की गुप्त रूप से सहायता करने” के आरोप की समर्थ में प्रत्यक्ष साक्ष्य पेश किए जाने चाहिए, जबकि आरोपी जहिरा तौर पर अधिवक्ता, पत्रकार आदि जैसे कार्यों में शामिल है।

इस आरोप पर कि डार ने फोटो जर्नलिस्ट होने की आड़ में सुरक्षा बलों और तैनाती की तस्वीरें साझा कीं, स्पेशल जज ने कहा कि उनके मोबाइल फोन के डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि टेलीग्राम मैसेज और इमेज़ेज़ भेजी गई हैं, लेकिन वे यह संकेत नहीं देते हैं उन्हें डार ने भेजा है। अदालत ने यह भी कहा कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि डार ने किसी भी समय किसी व्यक्ति या संगठन के साथ सुरक्षा बलों या तैनाती की कोई इमेज या फोटोग्राफ साझा किया था।

अदालत ने आगे कहा कि हालांकि वह इस स्तर पर सबूतों की विस्तृत जांच नहीं हो सकती, मगर “यह कहना पर्याप्त होगा कि कोई भी साक्ष्य (डी-30, डी-90, डी-89 और डी-141) या गवाहों के बयान (PW-251, PW-261 और X-14) किसी भी तरीके से किसी ‘आतंकवादी गतिविधि’ की ओर इशारा करते हैं, जैसा कि अधिनियम की धारा 15 में परिभाषित किया गया है।” अदालत ने थावा फ़ज़ल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया पर भरोसा करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए की धारा 15, 20, 38 और 39 के तहत अपराधों के अवयवों पर विस्तार से चर्चा की है और माना है कि उन धाराओं के तहत अपराध साबित करने के लिए आवश्यक बुनियादी सामग्री अधिनियम की धारा 15 के तहत परिभाषित किसी भी आतंकवादी कार्य या गतिविधि को करने के लिए किया गया कोई भी प्रत्यक्ष कार्य है।

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