खास रिपोर्ट

केंद्र की मोदी सरकार ने सेना पर जबरन थोपी थी अग्निपथ योजना, ऐलान से चौंक गई थी सेना, पूर्व सेना प्रमुख जनरल नरवणे की किताब में चौकाने वाला खुलासा !

मोदी सरकार की बहुविवादित अग्निपथ योजना पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। पूर्व सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने अपनी आने वाली किताब में अग्निपथ योजना को लेकर बड़ा खुलासा किया है।

खबरों के मुताबिक, उन्होंने कहा है कि सैनिक, एयरमैन और नाविकों की कम अवधि की भर्ती के लिए अग्निपथ योजना लागू करने के ऐलान से सशस्त्र बल चौंक गए थे। उन्होंने कहा कि आर्म्ड फोर्सेस का मानना था कि चार साल के कार्यकाल के बाद बड़ी संख्या में कर्मियों को सेवा में रखा जाना चाहिए और बेहतर वेतन दिया जाना चाहिए, लेकिन योजना में इसका उल्टा हुआ।

 

जनरल एमएम नरवणे 31 दिसंबर, 2019 से 30 अप्रैल, 2022 तक भारतीय थल सेना के प्रमुख रहे थे। अपने आगामी संस्मरण ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में पूर्व सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने खुलासा किया है कि उन्होंने 2020 की शुरुआत में सेना में भर्ती के लिए प्रधानमंत्री मोदी को ‘टुअर ऑफ ड्यूटी’ योजना का प्रस्ताव दिया था। इस स्कीम के तहत अधिकारियों के लिए शॉर्ट सर्विस कमिशन की तरह सीमित संख्या में जवानों को कम अवधि के लिए बल में भर्ती किया जा सकता था।

जनरल नरवणे ने दावा किया है कि उनके प्रस्ताव के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) एक अलग ही योजना लेकर आ गया। उसमें सुझाव दिया गया कि न केवल थल सेना के लिए एक साल में होने वाली पूरी भर्ती अल्पकालिक सेवा के आधार पर होनी चाहिए, बल्कि इसमें भारतीय वायु सेना और नौसेना को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सेना के लिए आश्चर्य की बात थी, नौसेना और वायु सेना के लिए और भी ज्यादा हैरान करने वाली बात थी।

जनरल एमएम नरवणे ने बताया कि उनका प्रस्ताव शुरू में थल सेना केंद्रित था, इसलिए वो वायुसेना और नौसेना को भी इसमें शामिल करने से हैरान थे। तीनों सेनाओं से जुड़ा होने के कारण इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत पर आ गई। इसके बाद योजना के विभिन्न मॉडलों पर चर्चा की गई, जिसमें सेना ने 75% जवानों को बनाए रखने और 25% को सेवा से मुक्त करने की वकालत की।

जनरल नरवणे के अनुसार, जब जून 2022 में सशस्त्र बलों की एज प्रोफाइल को कम करने के लिए एक ‘ट्रांसफॉर्मेटिव स्कीम’ के रूप में अग्निपथ योजना शुरू की गई, तब यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष चुने गए लगभग 46,000 सैनिक, एयरमैन और नाविकों में से केवल 25% ही शुरुआती चार वर्षों के बाद भी अतिरिक्त 15 वर्षों तक सेवा में बने रहेंगे।

जनरल एमएम नरवणे ने अपनी किताब में यह भी उल्लेख किया है कि पहले वर्ष में शामिल होने वालों के लिए शुरुआती वेतन शुरू में 20,000 रुपये प्रति माह निर्धारित किया गया था। हालांकि, सेना ने दृढ़ता से वेतन में वृद्धि की सिफारिश की, क्योंकि उनका मानना था कि एक सैनिक की भूमिका की तुलना दैनिक वेतन भोगी मजदूर से करना सही नहीं है। उनकी सिफारिशों के आधार पर बाद में वेतन बढ़ाकर 30,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया।

देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की असामयिक मृत्यु के बाद उन्हें सीडीएस के रूप में नियुक्त नहीं किए जाने के सवाल का जवाब देते हुए जनरल नरवणे ने सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया पर अपना भरोसा व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जब उन्हें सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था तो उन्होंने कभी भी सरकार के विवेक पर सवाल नहीं उठाया और अब भी उनके पास ऐसा करने का कोई कारण नहीं है।

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