मणिपुर

मणिपुर में हिंसा का असली कारण क्या है ? क्यों मणिपुर में भड़की हिंसा जानिये इस खबर में !

मणिपुर में हिंसा का असली कारण क्या है ? क्यों मणिपुर में भड़की हिंसा जानिये इस खबर में !

मणिपुर में भड़की हिंसा के बाद हालात खराब हैं। चारों तरफ अफरा-तफरी है, कई जिलों में कर्फ्यू है, मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद कर दिया है। हालात इतने बेकाबू हो गए हैं दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए हैं।

लेकिन सवाल है की मणिपुर में आखिर कैसे और क्यों भड़की हिंसा तो इसका जवाब है की हिंसा की शुरुआत चूराचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन, मणिपुर (एटीएसयूएम- ATSUM) के आह्वान पर हुए आदिवासी एकता मार्च से मानी जा रही है। इस मार्च का आयोजन मैती समुदाय द्वारा उन्हें राज्य की अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल किए जाने की मांग के खिलाफ किया गया था।

इस मार्च में विभिन्न आदिवासी समुदाय के लोगों ने भारी संख्या में हिस्सा लिया था। मार्च का नारा था – Come now, let us reason together…यह मार्च जब इलाके के सेनापति, उखरुल, कांगपोकपी, तामेंगलॉंग, चूराचांदपुर, चांदेल और तेंगनुपल से गुजरा तो नारे और बुलंद हो गए।
इस रैली में हजारों की तादाद में लोग शामिल थे। इसी मार्च के दौरान आदिवासी और गैर-आदिवासियों के बीच तोरबंग इलाके में हिंसा शुरु हो गई।

 

मैतेई समुदाय की आबादी यहां 53 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं। वहीं, नागा और कुकी समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाकों में बसे हैं, जो राज्य का 90 फीसदी इलाका है। मणिपुर में एक कानून है। जिसके मुताबिक, आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं। चूंकि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते। जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं। मैतेई और नागा-कुकी के बीच विवाद की यही असल वजह मानी जा रही है, इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी।

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