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समान नागरिक संहिता पर केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट को दो टूक,अदालत कार्यपालिका को कोई निर्देश नहीं दे सकती है। !

समान नागरिक संहिता पर केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट को दो टूक,अदालत कार्यपालिका को कोई निर्देश नहीं दे सकती है।

 

केंद्र सरकार के कानून मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अदालत संसद को कोई कानून बनाने या उसे लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती है। मंत्रालय ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग वाली जनहित याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। इसमें कहा गया है कि विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के नागरिक अलग-अलग संपत्ति और वैवाहिक कानूनों का पालन करना एक राष्ट्र की एकता का अपमान है और कानून होना या न होना एक नीतिगत निर्णय है और अदालत कार्यपालिका को कोई निर्देश नहीं दे सकती है।

मंत्रालय की यह प्रतिक्रिया अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर आई है, जिसमें विवाह तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की गई है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में अनुच्छेद 14, 15, 21, 44, और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों की भावना में धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर बिना किसी पूर्वाग्रह के तलाक के आधार पर विसंगतियों को दूर करने और नागरिकों के लिए उन सभी को समान बनाने के लिए कदम उठाने की मांग की।

 

 

 

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