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किसानो की शहादत के बाद भी विपक्ष की चुप्पी न सिर्फ निंदनीय है बल्कि घोर निराशाजनक है !

सत्तापक्ष की मजबूरी तो जगजाहिर है लेकिन किसानो की शहादत के बाद भी विपक्ष की चुप्पी न सिर्फ निंदनीय है बल्कि घोर निराशाजनक है क्या मज़बूरी है विपक्ष की की किसानो की शाहदत पे अपनी संवेदना प्रकट करने धरनास्थल तक नहीं जा रहा क्या इतना डरा हुआ विपक्ष कोई उम्मीद दे सकता है हाथरस से एक उदाहरण प्रस्तुत करने वाली कांग्रेस भी क्यों नहीं जा रही शोकाकुल किसानो से मिलने समझ से परे है क्या मान लिया जाए की देश में अब भावनाए संवेदनाएँ मर चुकी है केवल राजनीती बची है !

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