उत्तरप्रदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की विवादित टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त हाईकोर्ट का आदेश “पूरी तरह से असंवेदनशीलता और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाता है”

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक विवादित आदेश में की गईं उन टिप्पणियों पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि महज स्तन पकड़ना और ‘पायजामे’ का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि टिप्पणियां पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण वाली हैं।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश से संबंधित मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गई कार्यवाही में केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा कि उसे यह कहते हुए तकलीफ हो रही है कि हाईकोर्ट के आदेश में की गईं कुछ टिप्पणियां पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण वाली हैं।

जस्टिस बीआर गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमें एक जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है।

 

कोर्ट ने कहा कि हमने हाईकोर्ट के आदेश को देखा है। हाईकोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 24, 25 और 26 में जज द्वारा संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है। ऐसा नहीं है कि फैसला जल्द में लिया गया है। सुनवाई के बाद निर्णय रिजर्व होने के 4 महीने बाद फैसला सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उसकी याचिका को भी साथ जोड़ा जाए और दोनों पर साथ सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान कोर्ट की सहायता करने को कहा है। मामले में अब दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 17 मार्च को अपने एक आदेश में कहा था कि महज स्तन पकड़ना और ‘पायजामे’ का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता लेकिन इस तरह के अपराध किसी भी महिला के खिलाफ हमले या आपराधिक बल के इस्तेमाल के दायरे में आते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक याचिका पर दिया था। इन आरोपियों ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी।

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