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पीरियड्स मासिक चक्र या मासिक धर्म क्या होता है जानिए, सम्पूर्ण जानकारी पर प्रमाणित प्राकृतिक चिकित्सक प्रीति खत्री का विशेष लेख !

पीरियड्स मासिक चक्र या मासिक धर्म क्या होता है जानिए, सम्पूर्ण जानकारी पर प्रमाणित प्राकृतिक चिकित्सक प्रीति खत्री का विशेष लेख !

पीरियड्स आने की उम्र-

आमतौर पर लड़कियों में पीरियड्स 11 से 14 साल की उम्र में शुरू हो जाती है। लेकिन अगर थोड़ा देर या जल्दी आजाए तो चिंता न करें। पीरियड्सशुरू होने का मतलब होता है की लड़की माँ बन सकती है। शुरुआत में पीरियड्स और ओव्यूलेशन के समय में अंतर हो सकता है। यानि हो सकता है की पीरियड्सशुरू नहीं हो लेकिन ओव्यूलेशन शुरू हो चुका हो। ऐसे में गर्भ धारण हो सकता है। और इसका उल्टा भी संभव है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि पीरियड्स शुरू नहीं होने पर भी प्रेगनेंट होना संभव है इसलिए सावधानी बरतें।

पहले ही किशोरियों को समझाएं-

लड़कियों में शारीरिक परिवर्तन दिखने पर या लगभग 10 -11 साल की उम्र में मासिक धर्म के बारे में जानकारी देकर इसे कैसे मैनेज करना है समझा देना चाहिए। जिससे वे शरीर में होने वाली इस सामान्य प्रक्रिया के लिए मानसिक रूप से भी तैयार हो जाएँ। साथ ही आप लोगों को भी यह समझने की जरूरत है कि पीरियड्स मवं में अपवित्रता जैसा कुछ नहीं है। ये एक सामान्य शारीरिक क्रिया है जो एक जिम्मेदारी का अहसास कराती है। इसकी वजह से लड़कियों पर आने जाने या खेलने कूदने पर पाबन्दी नहीं लगानी चाहिए। पर ध्यान रहे बच्चियों को गर्भ धारण करने की सम्भावना के बारे में जरूर समझाना चाहिए जिससे वे सतर्क रहें।

पीरियड्स आने पर-
सभी महिलाएं पीरियड्स की डेट जरूर याद रखें जिससे आप पहले ही तैयार रहें।
इस दौरान खुदको किसी चीज़ से न रोकें नहीं। सामान्य जीवन शैली ही जिएं। बस अगर मौका मिले तो थोड़ा आराम करें।

पीरियड्स के बारे में कुछ ज़रुरी और रोचक तथ्य :

यदि आपका पीरियड मिस हो गया या लेट हो गया है और आप इस चिंता में हैं कि किसी वजह से आप प्रेग्नेंट न हो जाएं । अगर ऐसा ही है तो आपके लिए यह जानना ज़रुरी है कि पीरियड्स मिस या लेट होने के अलावा प्रेग्नेंसी के और भी बहुत से कारण होते हैं । 
तनाव: आपके साथ ऐसा तनाव की वजह से भी हो सकता है, जिसके कारण पीरियड्स में देरी हो जाती है । एक शोध के अनुसार किसी विषय के बारे में बहुत अधिक सोचने से भी ऐसा हो सकता है ।

• मेनोपॉज: वैसे 45 की उम्र के बाद ही मेनोपॉज होता है, परंतु कभी-कभी ये महिलाओं में जल्दी भी हो जाता है । महिलाएं अगर बर्थ-कंट्रोल पिल्स का सेवन करती हैं, तो भी पीरियड्स साइकल पूरी तरह बिगड़ सकती है ।

• पॉलि‌सिसटिक ओवरी सिंड्रोम: यदि महिलाएं पॉलि‌सिसटिक ओवरी सिंड्रोम की शिकार हैं, तो इस कारण भी पीरियड्स में रुकावट आ सकती है । ऐसे केस में कईं बार महिलाओं की छाती और चेहरे पर बाल भी आ जाते हैं ।

• वज़न घटना और बढ़ाना: यदि किसी महिला ने अपने वज़न को घटाया या बढ़ाया है तो इससे उसकी पीरियड साइकिल पर भी बहुत प्रभाव पड़ सकता है ।

• थायराइड: अगर किसी महिला को थायराइड की समस्या है और थायराइड अचानक बढ़ने या घटने लगे तो इससे भी बहुत अधिक समस्या हो सकती है ।
पीरियड्स में क्या नहीं करना चाहिए ?
महीने के वो कुछ दिन हर महिला के लिए बहुत अलग होते हैं । कुछ महिलाओं को तो इन दिनों में काफी पीड़ा सहनी पड़ती है तो कुछ के लिए यह दर्द सामान्य होता है । लेकिन पीरियड्स के दिनों में लगभग हर लड़की या महिला बेचैन रहती है ।
पीरियड्स के समय में महिलाओं के शरीर में कई तरह के हॉर्मोनल बदलाव होते रहते हैं । ऐसे में अपने खानपान के साथ दूसरी बातों का भी ध्यान रखना चाहिए । ऐसे पांच काम, जो पीरियड्स के दौरान नहीं करने चाहिए ।

 

• असुरक्षित संबंध न बनाएं

अक्सर महिलाएं पीरिड्स के दिनों में भी सैक्स करती हैं और उनका मानना होता है कि इससे प्रेग्नेंसी नहीं होगी । ऐसा भूलकर भी नहीं सोचना चाहिए कि पीरियड्स में आप गर्भवती नहीं हो सकती हैं । पीरियड्स में भी प्रेग्नेंसी की संभावनाएं बनी रहती हैं और इसके साथ ही किसी तरह के इंफेक्शन से बचने के लिए भी इस दौरान संबंध बनाने से बचना चाहिए ।

• खाना न छोड़ें
यह आपके लिए बहुत आवश्यक है कि आप सही मात्रा में भोजन करें । पीरियड्स में भोजन छोड़ना जोखिमभरा हो सकता है । इस बात का ख्याल आपको होना चाहिए की इस दौरान शरीर काफी कमजोर हो जाता है । ऐसे में खाना कम खाना या खाना छोड़ देना भारी पड़ सकता है । कोशिश करें कि आप जो भी खाएं, उसमें प्रोटिन, कैल्शियम और विटामिन भरपूर मात्रा में हो ।

• शारीरिक तौर पर काम करने से बचें

यदि पीरियड्स के दौरान आपको तेज दर्द हो रहा है या फिर आपकी पीठ में अकड़न हो रही है, तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपको शारीरिक तौर पर काम नहीं करना है । जितना हो सके आराम करें और अगर काम इतना ही आवश्यक है तो काम को हल्के-हल्के करें । अगर ऐसा नहीं होता तो आपके शरीर का दर्द और अधिक बढ़ सकता है ।

खून निकलने या बहने की मात्रा हर दिन अलग-अलग होगी । आमतौर पर शुरुआती पीरियड्स में सबसे अधिक खून निकलता है और अंत में सबसे कम होता है । जब लड़कियों को पहली बार पीरियड्स होते हैं, तब उनकी बहुत हैवी पीरियड्स साइकल हो सकती हैं और अगले में बहुत हल्की हो सकती है ।

आप उस उम्र में हो सकती हैं जब आप कॉलेज जा रही हैं । पीरियड्स उसके पहले या दूसरे साल में हो सकते हैं या आप उन लड़कियों में से एक हो सकती हैं, जिनके पीरियड्स बॉडी वेट या डाइट में बदलाव, स्ट्रेस, ईटिंग डिसऑर्डर, हॉर्मोन असंतुलन, एक्सरसाइज, बीमारी या दूर जाने से प्रभावित हो सकते हैं । जबकि एक लड़की के लिए यह सामान्य है कि उसे एक या दो साल तक अनियमित पीरियड्स शुरु हों ।

जब आप अपने सालाना चेक-अप के लिए जाती हैं तो अपने पीरियड कैलेंडर को अपने डॉक्टर से साझा करना चाहिए । यदि आपके पीरियड्स के दूसरे साल में पीरियड्स 6 बार से कम है या उसके एक साल बाद 8 बार से कम है, तो इसका कारण तनाव, ज्यादा एक्सरसाइज़, वजन कम होना या आहार हो सकता है । यदि आपके पीरियड्स के बीच 35 से अधिक दिन का अंतर हैं तो आपको जांच करानी चाहिए ।

आपको अपने पीरियड्स की जानकारी होनी चाहिए…

आपके पीरियड कब शुरू होते है और कब रुकते हैं, यह देखने का एक अच्छा तरीका यह है कि आप यह नोटिस करें कि आपकी मैन्सट्रुअल साइकल का कोई पैटर्न है या नहीं । यह लिखना भी महत्वपूर्ण है कि आपके पास कितने दिनों के पीरियड्स हैं और आपके खून के बहाव की क्या मात्रा है । जब आप यह देखते हैं तो अपने पीरियड ट्रैकर्स को अपने साथ लाएं ताकि वह आपकी मैन्सट्रुअल साइकल का पता लगा सके ।

मासिक पीरियड्स और लक्षण ट्रैकर

महिने के पीरियड्स और लक्षण ट्रैकर का प्रिंट आउट लें, यह आपके मैन्सट्रुअल खून के बहाव को ट्रैक करने का एक आसान तरीका है, यहां तक कि यह हर महीने की ऐंठन और पीरियड्स के लक्षणों पर नज़र रखने का भी एक तरीका है । लड़की को किस उम्र में पीरियड्स शुरू होगा, यह कई बातों पर निर्भर करता है । 

निष्कर्ष

किसी भी लड़की के जीन्स, खान-पान, रहन-सहन, स्थान जहां वो रहती है, उस स्थान की ऊंचाई कितनी है आदि पर उसके पीरियड्स निर्भर करते हैं । पीरियड्स या मासिक धर्म हर महीने में एक बार आते हैं । यह एक साइकल है जो सामान्य तौर पर 28 से 35 दिनों के लिए होती है । लड़की जब तक गर्भवती न हो जाए यह प्रक्रिया हर महीने चलती है और इसी कारण 28 से 35 दिनों के बीच नियमित तौर पर पीरियड्स या माहवारी होती है । कुछ लड़कियों या महिलाओं को माहवारी 3 से 5 दिनों तक रहती है, तो कुछ को 2 से 7 दिनों तक हो सकती है ।

माहवारी यानि पीरियड्स महिलाओं में होने वाली एक प्राकृतिक क्रिया है जिसके बारे में जानना हर बढ़ती उम्र की लड़की के लिए ज़रूरी है |
परन्तु आज भी काफ़ी युवा लड़कियों को इस क्रिया के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं हैं जो ऐसे समय में होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों को अपनाना और भी कठिन बना देता है |

गर्भधारण करने पर क्या होता है ?

हर महीने एक औरत का शरीर गर्भधारण के लिए अपने आप को तैयार करता है | गर्भाशय की परत फर्टिलाइज़्ड अंडे को लेने के लिए मोटी हो जाती है | जब अंडा नर शुक्राणु से मिल कर गर्भाधान कर लेता है तब यह जाकर गर्भाशय की परत से लग कर बढ़ने लगता है | क्योंकि अब उस परत से अंडे को पोषण मिल रहा है, यह झड़ता नहीं है और प्रसव होने तक (पूरे 9 महीनों के लिए) मासिक धर्म रुक जाती है |

प्रसव के पश्चात उस परत की भूमिका समाप्त हो जाती है और वह झड़ कर योनि से बाहर निकल आता है|
“आम तौर पर मासिक चक्र 21 से लेकर 35 दिनों तक का होता है परन्तु यह हर बार ज़रूरी नहीं | हर लड़की का मासिक चक्र एक समान नहीं होता | प्यूबर्टी के शुरूआती महीनों में मासिक चक्र का लम्बा होना स्वाभाविक है | ज़्यादातर महिलाओं के लिए बढ़ती उम्र के साथ-साथ यह चक्र नियमित हो जाती है |”
क्योंकि मासिक धर्म में हॉर्मोन्स जैसी कई चीज़ों की भूमिका होती है, कभी-कभी कई कारणों की वजह से माहवारी में दिक्कतें आ सकती हैं |
अनियमित माहवारी
मासिक धर्म संबंधित परेशानियों में सबसे आम दिक्कत है अनियमित माहवारी का होना |
“अनियमित माहवारी के कई पहलू है | मासिक धर्म में निम्नलिखित किसी भी परेशानी के होने से उसको अनियमित माहवारी कहा जा सकता है” –
मासिक चक्र का 21 दिनों से छोटा या 35 दिनों से ज़्यादा होना
माहवारी के वक़्त सामान्य से अधिक मात्रा में खून निकलना
मासिक चक्र का हर बार बदल जाना
तीन या उससे ज़्यादा महीनों तक माहवारी न आना (amenorrhea)
दो माहवारी के बीच में अनियमित रूप से खून निकलना

Menorragia

जब माहवारी के समय सामान्य रूप से ज़्यादा खून निकलने लगता है या फिर माहवारी 7 से ज़्यादा दिनों के लिए चलती रहती है तब उसको मेडिकल शब्दों में menorrhagia कहते है |
“अक्सर युवा लड़कियों को ज़्यादा जानकारी न होने की वजह से थोड़ी अधिक ब्लीडिंग होने पर ही लगता है की उनमे कुछ परेशानी है | परन्तु ज़रूरी है कि वे जाने कि menorrhagia में कुछ विशेष संकेत होते है जैसे कि – अधिक ब्लीडिंग के कारण हर दूसरे घंटे अपना पैड बदलना, हफ़्ते भर से ज़्यादा दिनों तक रक्त निकलना, रक्त के थक्कों (blood clots) का निकलना, दो से ज़्यादा पैड्स पहनना और प्रायः माहवारी के दौरान असहनीय दर्द होना |”
Menorrhagia कई कारणों से हो सकती है जैसे कि – हॉर्मोन्स का अनियंत्रित होना, रक्त की कोई बीमारी होना, गर्भाशय और अंडाशयों की बीमारी होना या फिर जीवनशैली में गड़बड़ होना (ज़्यादा तनाव लेना, थाइरोइड की बीमारी होना) |
माहवारी न होना (Amenorrhea)
“जब किसी युवा लड़की को प्यूबर्टी की शुरुआत होने के बावजूद, 15-16 साल तक माहवारी नहीं होती है या फिर नियमित रूप से होने वाली माहवारी अचानक ही होना बंद हो जाती है तो उसको एमेनोरीआ कहते है |”
“गौर करने वाली बात यह है की प्यूबर्टी से पहले, गर्भधारण और मीनोपॉज के पष्चात माहवारी अगर न हो तो यह एक सामान्य बात है | इन तीनों परिस्तिथियों के अलावा अगर माहवारी रुक जाए तो यह एक चिंताजनक बात हो सकती है |”
युवा लड़कियों में माहवारी समय पर शुरू न होना किसी शारीरिक असामन्यता की वजह से हो सकती है | अक्सर प्रजनन प्रणाली के अंगों का कमज़ोर होना इसका कारण होता है |
“लेकिन नियमित माहवारी का एकदम से बंद हो जाना PCOD जैसी बीमारी का संकेत भी हो सकता है |”
क्या है PCOD…
पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिसॉर्डर (PCOD) एक हॉर्मोनल बीमारी है जिसमे अंडाशयों में बहुत सारे छोटे-छोटे थैलियों (follicles) के बनने के कारण वे नियमित रूप से अंडे नहीं बना पाते है | अण्डों के रिलीज़ न होने से माहवारी रुक जाती है और मासिक चक्र अनियमित हो जाती है |
“यह बीमारी अक्सर हॉर्मोन्स में असंतुलन आने पर होती है |”
PCOD के सबसे एहम लक्षण है – अनियमित माहवारी होना या बहुत समय तक माहवारी न होना, शरीर और चेहरे पर अधिक मात्रा में बाल उगना और बहुत से मुँहासे होना |
“ज़रूरी है की महिलाएँ इन लक्षणों को समय पर पहचाने ताकि जल्द से जल्द इसका इलाज हो सके | जीवनशैली में आसान से बदलाव करके PCOD को मैनेज किया जा सकता है |”
Dysmenorrhoea – माहवारी के समय अधिक से ज़्यादा पीड़ा होना
माहवारी में होने वाली और एक आम परेशानी है dysmenorrhea |
Dysmenorrhea होने पर महिलाओं को पेट के निचले हिस्से में गंभीर रूप से दर्द होता है | यह दर्द माहवारी शुरू होने के कुछ दिन पहले से ही होने लगता है और लगभग 1 से 3 दिनों तक रहता है |
“इस हालत में पीड़ा इतनी अधिक हो जाती है की महिलाएँ अक्सर अपने रोज़मर्रा के काम नहीं कर पाती | यह दर्द युवा लड़कियों को भी विद्यालय से छुट्टी लेने पर मजबूर कर देता है |”
परन्तु ध्यान देने वाली बात यह है कि माहवारी के समय इतना ज़्यादा दर्द होना कोई सामान्य बात नहीं हैं | इसके होने पर हर महिला को अपनी जांच अवश्य करानी चाहिए क्योंकि dysmenorrhea एन्डोमीट्रीओसिस जैसी गंभीर बीमारी के कारण भी हो सकती है |
सही समय पर जांच किसी आने वाली दुविधा को टालने में मदद करता है |
मासिक धर्म एक महिला के जीवन का एक एहम हिस्सा होता है जो जीवनभर उनका साथ निभाता है | परन्तु एक उम्र के बाद महिलाओं को माहवारी होना पूरी तरह से बंद हो जाता है | इसको मीनोपॉज कहते है |
क्या होता है मीनोपॉज
जब महिला 45 से 55 की उम्र तक पहुँच जाती है तो उनको माहवारी होना हमेशा के लिए बंद हो जाता है | इसको मीनोपॉज कहते है |
“एक उम्र के बाद महिलाओं के अंडाशय अंडे बनाना बंद कर देते है | इससे गर्भाशय की परत भी मोटी होनी बंद हो जाती है जिससे माहवारी नहीं होती | इसका यही मतलब होता है कि अब वह माँ नहीं बन पाएंगी |”
मीनोपॉज के शुरू होने पर महिला के शरीर में कई बदलाव होते है और उन्हें कई चीज़े महसूस होती है जैसे की – hot flushes ( अचानक से तेज़ गर्मी लगना), नींद में परेशानी आना, बालों का झड़ना, योनि में सूखापन आना और मनो-दशा में बदलाव आना |
“महिलाओं के लिए ऐसे समय इन बदलावों से जूझना कठिन हो सकता है परन्तु सही जानकारी से और अपनों के साथ से मेनोपॉज़ जैसे पड़ाव को आसानी से पार किया जा सकता है |”
मेंस्ट्रुअल साइकिल को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है।
आमतौर पर यह चक्र 21 से 35 दिन तक का होता है।

फेज़ 1- माहवारी या पीरियड्स

इस फेज को हम सब अच्छी तरह से जानते हैं। अक्सर यह 4 से 5 दिन दर्दनाक होते हैं। इस दौरान हमारी योनि से खून का बहाव होता है। डॉ दाफ्ले कहती हैं,”अपने पीरियड्स के पहले दिन के अनुसार आप अपनी पूरी साइकिल का अंदाजा लगा सकती हैं। हालांकि इसके सही हिसाब के लिए 2 से 3 महीने की डेट्स को इस्तेमाल करना चाहिए।

फेज़ 2- ओव्यूलेशन

यह फेज आपके पीरियड्स खत्म होने के ठीक बाद शुरू होता है। इस फेज को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- प्री-ओव्यूलेशन और ओव्यूलेशन।
प्री-ओव्यूलेशन के दौरान यूटेरस की एंडोमेट्रियल लाइनिंग तैयार होती है। ओव्यूलेशन के दौरान यह लाइनिंग पूरी तरह से तैयार होती है और हमारा गर्भ बच्चे के लिए खुद को तैयार कर चुका होता है। इस फेज में प्रेगनेंसी की संभावना ज्यादा होती है। हमारा ओवम (एग) इस फेज में स्पर्म का इंतजार करता है और ऐसा ना होने पर अगले फेज की ओर बढ़ता है

फेज 3- ल्यूटीयल फेज

ओवम अब मेटिंग के काबिल नहीं रह जाता, इसलिए इस फेज में प्रेगनेंसी की उम्मीद बहुत कम होती है।
फर्टिलाइजेशन ना होने पर यूटेरस में बनी लाइनिंग टूटना शुरू होती है। इसके बाद यही लाइनिंग खून के रूप में शरीर से बाहर निकल जाती है।
क्यों आवश्यक है मेंस्ट्रुअल साइकिल को अच्छी तरह समझना
1. असामान्यताओं को पहचानने के लिए
अगर आप अपने पीरियड्स का हिसाब रखती हैं तो आपको कभी भी किसी भी प्रकार की असामान्यता तुरन्त पकड़ में आ सकती है। ऐसा होने पर आप डॉक्टर से मिलकर उसका सही इलाज समय पर शुरू करवा सकती हैं।
2. प्रीमैच्योर मेनोपॉज को समझें
यदि आपकी मां का मेनोपॉज कम उम्र में हो गया था (38-40 के बीच), तो चांस है कि आपका मेनोपॉज भी उसी उम्र के आसपास हो जाएगा। इससे आप अपनी फैमिली प्लानिंग ठीक से कर सकेंगी।
3. एंडोमेट्रियोसिस एंड फायब्राइड
अगर आपको पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक दर्द होता है, तो हो सकता है आपको एंडोमेट्रियोसिस की समस्या हो। अगर आपको पीरियड्स के दौरान ब्लड क्लॉट्स या खून के थक्के निकलते हैं, तो आप फायब्राइड की समस्या से जूझ रही हो सकती हैं। दोनों ही मामलों में डॉक्टर से जल्द से जल्द राय लेना ही सबसे बेहतर उपाय है।
“आपके मेंस्ट्रुअल साइकिल के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है। इससे न सिर्फ आप अपने स्वास्‍थ्‍य को समझ सकती है, बल्कि कई गम्भीर बीमारियों से भी खुद को बचा सकती हैं।”
पीरियड्स में क्या है नॉर्मल और क्या है एबनॉर्मल…

आपके पीरियड्स आपकी हेल्‍थ के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं। इसे ट्रैक कर के आप जान सकती हैं कि आपके पीरियड्स नॉर्मल हैं या नहीं। बहुत सी महिलाओं को इसके बारे में जानकारी नहीं होती इसलिये वह समस्‍या का पता नहीं लगा पातीं।
मासिक धर्म आमतौर पर हर महिला के जीवन की एक आम प्रक्रिया है। पीरियड सिर्फ प्रजनन के लिए ही जरुरी नहीं होता बल्कि यह स्वास्थ्य के बारे में भी बताता है। क्या आपको मालूम है कि आपका अंतिम पीरियड कब हुआ और कितने दिनों तक रहा? यदि नहीं तो आपको अभी से अपने पीरियड पर नजर रखनी चाहिए। पीरियड्स की डेट को ट्रैक करने से यह समझने में मदद मिलती है कि आपके लिए क्या सामान्य है। इसके साथ ही ओव्यूलेशन टाइम और जरूरी बदलावों को भी समझने में मदद मिलती है। यदि आपका पीरियड अनियमित है तो यह किसी स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है। इसलिए हर महिला को अपने पीरियड को समझना बेहद जरूरी है।

​मासिक धर्म को कैसे ट्रैक करें?

पीरियड को ट्रैक करने के लिए हर महीने यह देखें कि आपका पीरियड सामान्य से कितने दिन अधिक या कम रहता है। इसके साथ ही हल्की या तेज ब्लीडिंग और सैनिटरी नैपकिन की संख्या पर भी ध्यान देना चाहिए। माहवारी के दौरान दर्द, मूड और व्यवहार में बदलाव के साथ ही योनि से खून के थक्के निकलने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।
मासिक धर्म अनियमित होने के कारण
आमतौर पर कई कारणों से पीरियड अनियमित होता है। स्तनपान कराने, अधिक वजन घटाने या अधिक एक्सरसाइज करने, खानपान की खराब आदतों, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज और यूट्रेरिन फाइब्रॉयड के कारण मासिक धर्म अनियमित होता है।
​ हर महीने पीरियड्स के दौरान होता है ब्लड लॉस…
आपके पीरियड्स हेवी हैं, नॉर्मल हैं या फिर पीरियड्स के दौरान ब्लीडिंग कम होती है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस दौरान जब शरीर से खून बाहर निकलता है तो हम सभी को यही लगता है कितना सारा खून बह गया लेकिन सच में ऐसा नहीं है.
हर महीने जब पीरियड्स आते हैं तो उन 4-5 दिनों या हफ्ते भर के दौरान आपको भी ऐसा महसूस होता होगा जैसे शरीर के अंदर एक जंग चल रही हो। पेट में तेज दर्द, मेन्स्ट्रुअल क्रैम्प्स तो आपकी समस्या को और बढ़ाते ही हैं। लेकिन पीरियड्स के दौरान होने वाले ब्लड फ्लो को देखकर शायद आपको भी ऐसा ही लगता होगा कि कितना सारा खून शरीर से बाहर निकल गया। जी हां, ज्यादातर लड़कियों और महिलाओं की सोच कुछ इसी तरह की होती है। ब्लीडिंग हेवी हो या नॉर्मल, ऐसा लगता मानो कितना सारा खून बह गया, लेकिन हकीकत इससे अलग है।
3 से 4 चम्मच के बराबर ब्लड लॉस
पीरियड्स यानी माहवारी के सभी दिनों को मिलाकर औसतन एक लड़की या महिला के शरीर से करीब 30 से 50 मिलिलीटर खून बाहर निकलता है। आसान शब्दों में कहें तो पीरियड्स के दौरान करीब 2 से 3 चम्मच ब्लड लॉस होता है। हालांकि कुछ रिसर्च की मानें तो पीरियड्स के दौरान औसतन 4 चम्मच के बराबर खून शरीर से बाहर निकलता है। हो सकता है ये आंकड़े पढ़कर आप भी यही सोच रही होंगी कि ये आंकड़े तो पूरी तरह से गलत हैं। देखने में तो वो कितना सारा खून होता है।
मेन्स्ट्रुअल फ्लूइड में खून के अलावा और क्या…
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पीरियड्स के दौरान शरीर से बाहर निकलने वाले मेन्स्ट्रुअल फ्लूइड में खून के अलावा और भी बहुत कुछ होता है। इसमें यूट्रस यानी गर्भाशय का टीशू, अन्तर्गर्भाशयकला (endometrial) की मोटी कोशिकाएं और ब्लड क्लॉट भी होता है जिससे मेन्स्ट्रुअल फ्लूइड की मात्रा ज्यादा नजर आती है। यही वजह है कि आपको देखने में लगता है कि कितना सारा खून शरीर से बाहर निकल गया जबकी हकीकत में वो 3 या 4 चम्मच खून ही होता है।
​किस स्थिति को कहते हैं हेवी पीरियड्स…
जिस तरह हर महिला का शरीर एक दूसरे से अलग होता है ठीक उसी तरह हर के पीरियड्स भी एक दूसरे से बिलकुल अलग होते हैं। किसी एक के लिए जो हेवी पीरियड्स है हो सकता है कि वह दूसरे के लिए नॉर्मल हो। पीरियड्स को आमतौर पर हेवी तब माना जाता है जब हर बार पीरियड्स साइकल के दौरान करीब 80 मिलिलीटर यानी 5 से 6 चम्मच के बराबर मेन्स्ट्रुअल फ्लूइड शरीर से बाहर निकल रहा हो। अगर आपका पीरियड्स 7 दिन से ज्यादा तक जारी रहता है तो इसे भी हेवी पीरियड्स माना जाता है।
​पीरियड्स में ज्यादा ब्लीडिंग होने के हैं कई कारण
एन्डोमीट्रिऑसिस- ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें गर्भाशय के अंदर मौजूद टीशू जैसा दिखने वाला टीशू गर्भाशय के बाहर भी बनने लगता है। इस दौरान पेट में तेज दर्द भी होता है।
फाइब्रॉयड्स- अगर यूट्रस में फाइब्रॉयड्स यानी रेशे बनने लगें तो इससे भी पीरियड्स के दौरान हेवी ब्लीडिंग होने लगती है।
पीसीओडी- अगर आपकी ओवरी यानी अंडाशय में सिस्ट की दिक्कत है तब भी पीरियड्स के दौरान ब्लड फ्लो बहुत हेवी हो सकता है।
आईयूडी- अगर आपने गर्भनिरोधक उपकरण इंट्रायूट्राइन डिवाइस लगवा रखा है तो इसका भी आपके पीरियड्स के दौरान होने वाली ब्लीडिंग पर असर पड़ता है।
​ये संकेत भी बताते हैं आपके पीरियड्स हैं हेवी
– अगर सैनिटरी नैपकिन या टैम्पून्स यूज करने के बाद भी पीरियड्स के दाग आपके कपड़ों में लगने लगें
– अगर हर 2 घंटे से भी कम समय में आपको सैनिटरी प्रॉडक्ट चेंज करने की जरूरत पड़े
– लीकेज रोकने के लिए 2 तरह के सैनिटरी प्रॉडक्ट का इस्तेमाल करना पड़े
सामान्य योनि स्राव
योनि स्राव ( जिसे कई बार योनि से निकलने वाला डिस्चार्ज कहा जाता है) मासिक चक्र के दौरान बदल जाता है। अंडोत्सर्ग के समय के आसपास यह पतला और खिंचाव वाला हो जाता है, ठीक वैसे जैसे कच्चे अंडे का सफेद भाग।

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